Crop के दुश्मन से सावधान ⚠️ | Resistance बढ़ रहा है! | IPM से करें मुकाबला (Pesticide Resistance in Farming)

प्रतिरोधकता (Resistance) – एक अदृश्य लेकिन खतरनाक दुश्मन

खेती-बाड़ी में कीटों, फफूंदों और बीमारियों से फसल को बचाने के लिए किसान कई तरह की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं — जैसे कीटनाशक (Insecticide), फफूंदनाशक (Fungicide), और माइटनाशक (Miticide)। इन दवाओं का मकसद है फसल को नुकसान पहुँचाने वाले दुश्मनों को खत्म करना, ताकि उपज बेहतर हो और किसान की मेहनत रंग लाए।

लेकिन जैसे हर दवा एक हद तक असर करती है, वैसे ही अगर इनका इस्तेमाल बिना योजना और समझ के किया जाए, तो वही दवा धीरे-धीरे असर खोने लगती है। यही वो बिंदु है जहाँ दवा का वरदान अभिशाप में बदलने लगता है

 1. प्रतिरोधकता क्या है?

प्रतिरोधकता (Resistance) का मतलब है जब फसल का दुश्मन —
जैसे कोई कीट, फफूंद या माइट — बार-बार एक ही दवा के संपर्क में आने से उस दवा का असर झेलना सीख जाता है, और अंत में उस पर असर होना बंद हो जाता है।

इसे ऐसे समझिए:
जब आप एक ही एंटीबायोटिक इंसान को बार-बार देते हैं, तो कुछ बैक्टीरिया बच जाते हैं और अगली बार उस दवा का कोई असर नहीं होता।
ठीक उसी तरह खेती में भी अगर बार-बार एक ही दवा छिड़की जाए, तो

  • कुछ कीट
  • कुछ फफूंद
  • या कुछ माइट

उस दवा के प्रति प्रतिरोधी (resistant) बन जाते हैं।

ऐसे दुश्मन बार-बार हमला करते हैं — और दवा बार-बार फेल हो जाती है।

यही है "प्रतिरोधकता" — एक अदृश्य लेकिन खतरनाक दुश्मन,
जो धीरे-धीरे खेत के अंदर पैदा होता है, और एक दिन दवाओं की पूरी ताकत को नाकाम कर देता है।


2. प्रतिरोधकता कैसे बनती है?

किसान जब किसी कीट या बीमारी को देखता है, तो स्वाभाविक है कि वह तुरंत असरदार दवा का छिड़काव करता है — ताकि नुकसान रोका जा सके।
लेकिन अगर बार-बार एक ही दवा का इस्तेमाल किया जाए, तो वो दवा धीरे-धीरे अपना असर खोने लगती है।

 क्या होता है अंदर ही अंदर?

जब एक ही रसायन बार-बार उपयोग होता है, तो

  • अधिकतर कीट या फफूंद उससे मर जाते हैं — लेकिन कुछ बच निकलते हैं।
  • ये बचे हुए कीट या फफूंद सबसे मजबूत होते हैं — और धीरे-धीरे उसी दवा के आदी (resistant) बन जाते हैं।
  • फिर जब अगली बार वही दवा दी जाती है, तो वो उस पर कोई असर नहीं करती।
  • ये बचे हुए दुश्मन अपनी अगली पीढ़ी में भी वही ताकत ले जाते हैं — और समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

इंसानों में भी ऐसा ही होता है — एंटीबायोटिक प्रतिरोध

जब किसी मरीज को बार-बार एंटीबायोटिक दी जाती है —
तो कुछ बैक्टीरिया बच जाते हैं और अगली बार उस दवा का कोई असर नहीं होता।
ठीक उसी तरह खेती में भी कीट/फफूंद उस दवा को पहचानने और सहने लगते हैं।


उदाहरण से समझें:

फफूंद का मामला:

मान लीजिए आपने हर 7–10 दिन पर लगातार क्लोरोथैलोनिल या मैनकोज़ेब का छिड़काव किया।
शुरुआत में असर दिखा, पर धीरे-धीरे आपने देखा कि पत्तों पर फफूंद फिर लौट आई।
इसका मतलब यह हुआ कि फफूंद की कुछ नस्लें अब उस दवा पर प्रभावित नहीं हो रहीं — यानि रेसिस्टेंस बन गया।

कीटों का मामला:

इसी तरह अगर आप बार-बार इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथोक्साम का छिड़काव करते हैं —
तो माइट्स, एफिड्स (चूसक कीट), और वुली एफिड जैसे कीट बचकर निकलने लगते हैं।
धीरे-धीरे ये कीट इतने मजबूत हो जाते हैं कि वही दवा अब उन पर बेअसर हो जाती है।


प्रतिरोधकता एक दिन में नहीं बनती — ये धीरे-धीरे और चुपचाप खेत के भीतर जन्म लेती है।
और जब इसका असर दिखता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।


3. क्या-क्या नुकसान होते हैं Resistance से?

जब खेत में प्रतिरोधकता (Resistance) विकसित हो जाती है, तो इसका असर सिर्फ दवा पर नहीं, बल्कि पूरे खेती तंत्र पर पड़ता है। किसान को लगता है कि वो अपनी फसल का बचाव कर रहा है, लेकिन असल में वो समय, पैसा और मेहनत तीनों गंवा रहा होता है।

आइए देखें प्रतिरोधकता से जुड़ी मुख्य हानियाँ:


 1. दवाएं बेअसर हो जाती हैं

सबसे पहले और सबसे बड़ा नुकसान यही है —
वो दवा जो कभी 100% असरदार थी, अब न के बराबर काम करती है।
फसल पर छिड़काव करने के बावजूद कीट/रोग वही के वही बने रहते हैं।

नतीजा? किसान को समझ ही नहीं आता कि अब क्या किया जाए।


2. खर्च बढ़ता है, असर घटता है

जब एक दवा बेअसर हो जाती है, तो किसान दोबारा छिड़काव करता है, फिर तीसरी बार करता है —
एक ही समस्या के लिए तीन-तीन बार दवा देना पड़ता है।

  • पैसा बढ़ता है
  • मज़दूरी बढ़ती है
  • लेकिन फिर भी असर घटता ही जाता है

मतलब:
"रोग नहीं जाता — लेकिन जेब जरूर खाली हो जाती है।"


 3. बार-बार छिड़काव की ज़रूरत

प्रतिरोधकता के कारण किसान को हर 5–7 दिन में बार-बार छिड़काव करना पड़ता है।

  • इससे काम का दबाव बढ़ता है
  • छिड़काव की लागत भी
  • और जोखिम भी (स्वास्थ्य और मौसम के कारण)

परिणाम: दवा पर निर्भरता बढ़ जाती है, लेकिन समाधान नहीं मिलता।


 4. उत्पादन में गिरावट और गुणवत्ता पर असर

जब रोग/कीट नियंत्रण में नहीं आते, तो इसका सीधा असर फसल पर पड़ता है —

  • उत्पादन घटता है
  • फलों में दाग-धब्बे, सड़न या असमय गिरावट
  • मार्केट में कम दाम मिलते हैं
  • कभी-कभी पूरी फसल अस्वीकृत हो जाती है (खासतौर पर निर्यात वाली फसलों में)


 5. मिट्टी और पर्यावरण पर असर

बार-बार छिड़काव से दवा के अंश मिट्टी में जमा हो जाते हैं —

  • मिट्टी के सूक्ष्मजीव मरते हैं
  • मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं
  • ज़हरीले अंश जलस्रोतों तक पहुँचते हैं

इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और खेती की ज़मीन खुद कमजोर होने लगती है।


 निष्कर्ष:

प्रतिरोधकता केवल एक दवा की विफलता नहीं है,
ये किसान की योजना, खेत की सेहत और भविष्य की खेती — तीनों पर चोट करती है।


4. मुख्य कारण: प्रतिरोधकता बढ़ने के

किसान मेहनत करता है, दवा खरीदता है, छिड़काव करता है — लेकिन फिर भी परिणाम नहीं मिलते।
ऐसे में ये समझना जरूरी है कि प्रतिरोधकता अचानक नहीं आती, बल्कि हमारी कुछ आदतों और फैसलों का नतीजा होती है।

आइए जानते हैं वो मुख्य गलतियाँ जो प्रतिरोधकता को जन्म देती हैं:


1. एक ही ब्रांड या एक ही एक्टिव इंग्रेडिएंट (सक्रिय तत्व) का लगातार प्रयोग

कई किसान एक बार जो दवा असरदार लगी, उसी को बार-बार उपयोग करने लगते हैं।
वे कंपनी या ब्रांड तो बदलते हैं, लेकिन एक्टिव इंग्रेडिएंट (जैसे इमिडाक्लोप्रिड, मैनकोज़ेब) वही रहता है।

जैसे:

  • कंपनी बदली, लेकिन दवा में बार-बार “क्लोथियानिडिन” ही है
  • दिखने में अलग दवा, पर अंदर वही रसायन

नतीजा? कीट और रोग उस सक्रिय तत्व के प्रति धीरे-धीरे प्रतिरोधी हो जाते हैं।


 2. अनावश्यक छिड़काव — बिना जरूरत के

बहुत से किसान एहतियात के नाम पर या “सुरक्षित रहने” के लिए बार-बार दवा छिड़कते हैं —
भले ही खेत में कोई रोग या कीट मौजूद न हो।

ये आदत रोगों और कीटों को पहले से दवा पहचानना सिखा देती है, और उनका शरीर धीरे-धीरे दवा के खिलाफ ढाल बना लेता है।


 3. अंधाधुंध मिलावट और टंकी मिक्स

बाजार के दबाव में या दुकानदार की सलाह पर कई किसान दो से तीन रसायन एक साथ मिलाकर छिड़कते हैं —
जिसे “टंकी मिक्स” कहा जाता है।

इससे:

  • दवाओं की ताकत आपस में घट जाती है
  • कुछ रसायन आपस में प्रतिक्रिया कर नुकसानदायक हो जाते हैं
  • और कीटों को मौका मिलता है धीरे-धीरे प्रतिरोध पैदा करने का


4. प्राकृतिक दुश्मनों को मार देना (जैसे मित्र कीट)

हर कीट बुरा नहीं होता।
कुछ कीट, जैसे लेडीबर्ड, ग्रीन लेसविंग, ट्राइकोग्रामा —
फसल के दुश्मन कीड़ों को खा जाते हैं।

लेकिन जब किसान हर कीट को मारने के लिए छिड़काव करता है,
तो मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं
और फिर असली दुश्मनों को रोकने वाला कोई नहीं बचता।


 5. सलाह के बिना कीटनाशकों/फफूंदनाशकों का छिड़काव

कई बार किसान बिना किसी कृषि अधिकारी, एक्सपर्ट या कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लिए खुद ही दवा चुन लेते हैं।
कभी दुकानदार की बात पर, कभी पड़ोसी की सलाह पर।

बिना जांच, बिना पहचान, और बिना योजना के किया गया छिड़काव अक्सर गलत दवा का गलत इस्तेमाल बन जाता है —
जो रोग या कीट को नहीं मारता, बल्कि उसमें प्रतिरोध पैदा कर देता है।


 निष्कर्ष:

जैसे गलत दवा बीमारी नहीं ठीक करती, वैसे ही
गलत आदतें फसल की रक्षा नहीं करतीं — उल्टा खतरा और बढ़ा देती हैं।


5. समाधान: Resistance से कैसे बचें?

अब तक हमने देखा कि प्रतिरोधकता कैसे बनती है और क्या नुकसान करती है।
अब ज़रूरत है इससे बचाव और नियंत्रण की —
ताकि दवाएं अपना असर बनाए रखें और फसल सुरक्षित रहे।

यहां दिए जा रहे उपाय व्यवहारिक, वैज्ञानिक और खेती से जुड़े अनुभवों पर आधारित हैं।


i. दवाओं का रोटेशन करें (Rotate Active Ingredients)

ब्रांड नहीं, तत्व पहचानें!

  • एक ही दवा को बार-बार न दें
  • हर बार दवा चुनते वक्त उसका एक्टिव इंग्रेडिएंट (जैसे: इमिडाक्लोप्रिड, थायोमेथोक्साम, मैनकोज़ेब, ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन) जरूर देखें
  • उसी तत्व को दूसरी कंपनियों के नाम से खरीदने की गलती न करें

कैसे करें रोटेशन?

  • दवा की कैटेगरी और कार्यविधि (Mode of Action) हर बार बदलें
  • दवाओं पर दिए गए FRAC/IRAC कोड देखें
  • FRAC = Fungicide Resistance Action Committee
  • IRAC = Insecticide Resistance Action Committee
  • कोशिश करें कि एक ही कोड वाली दवा लगातार दो बार न दें

उदाहरण:
पहले स्प्रे में IRAC कोड 4A की दवा दी गई है, तो अगली बार कोड 28 या 3A की दें — ताकि कीट भ्रमित हो और प्रतिरोध न बना सके।

ii. जरूरत के अनुसार दवा दें — Observation-Based Approach

हर मंगलवार या हर 10 दिन पर दवा देना जरूरी नहीं होता!

  • दवा तब दें जब रोग या कीट के लक्षण दिखें
  • खेत में नियमित निगरानी करें — पत्तियों की उल्टी सतह, नई कोपलों, और फलों की जांच करें
  • नुकसान की आर्थिक सीमा (ETL – Economic Threshold Level) को समझें —
  • जब कीट/रोग की संख्या फसल को वास्तविक नुकसान पहुंचाने लगे, तभी दवा दें

यह तरीका खर्च भी बचाता है, और प्रतिरोधकता भी रोकता है


iii. Integrated Pest Management (IPM) अपनाएं

IPM मतलब – रासायनिक + जैविक + यांत्रिक उपायों का संतुलन।

जैविक उपाय:

  • Beauveria bassiana, Metarhizium anisopliae जैसे जैविक कवक
  • Trichoderma – फफूंद के खिलाफ मिट्टी में
  • Neem Oil – कीटों को भगाने में कारगर

 मित्र कीटों का संरक्षण:

  • लेडीबर्ड बीटल, ग्रीन लेसविंग, ट्राइकोग्रामा वास्प
  • ये स्वाभाविक शिकारी हैं — जो दुश्मनों को खा जाते हैं

यांत्रिक/सांस्कृतिक उपाय:

  • फेरोमोन ट्रैप, येलो स्टिकी ट्रैप, लाइट ट्रैप
  • खेत की सफाई, फसल चक्र, समय पर गुड़ाई आदि

 IPM अपनाने से आप कम दवा में ज्यादा असर पा सकते हैं — और खेत में जीवन का संतुलन बना रहता है।


iv. वैज्ञानिक सलाह लें — अटकलबाज़ी नहीं!

  • किसी दुकान या पड़ोसी की राय पर भरोसा करने से बेहतर है कि
  • आप कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), विस्तार अधिकारी, या प्रशिक्षित सलाहकार से राय लें।
  • समस्या की पहचान सही होगी, तभी समाधान भी सही होगा।
  • कुछ ऐप्स और वेबसाइट जैसे magicofsoil.in, plantix या ICAR-KVK Portals पर विशेषज्ञ सलाह उपलब्ध है।

 निष्कर्ष:

प्रतिरोधकता कोई लाइलाज बीमारी नहीं है —
अगर किसान समझदारी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए, तो इसे रोका जा सकता है।
 सच्ची दवा वही है जो समझदारी से, सही समय पर और सही मात्रा में दी जाए।


6. कैसे पहचाने कि दवा अब असर नहीं कर रही?

कई बार किसान को लगता है कि दवा दी गई, फिर भी असर नहीं हो रहा।
लेकिन वह यह नहीं समझ पाता कि ये कीट की ताकत नहीं, बल्कि उस दवा के प्रति उसका प्रतिरोध (Resistance) है।

प्रतिरोधकता का शुरुआती पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन कुछ चिह्न ऐसे हैं जिन्हें अगर आप सही समय पर समझ लें, तो दवा बदलकर या तरीका सुधारकर फसल को बचाया जा सकता है।


पहचान के संकेत (Warning Signs):


1. बार-बार स्प्रे करने के बाद भी कीट/रोग बना रहे

  • आप हर 5–7 दिन पर दवा का छिड़काव कर रहे हैं
  • लेकिन फिर भी कीटों की संख्या जस की तस बनी रहती है
  • पत्तियों पर फफूंद के धब्बे या माइट्स बार-बार लौटते हैं

 इसका मतलब हो सकता है कि वो कीट या फफूंद अब उस दवा को सहने लगे हैं।


2. दवा का असर कुछ ही दिन रहता है (Short-lived Effect)

  • दवा देने के 1–2 दिन बाद कुछ राहत मिलती है
  • लेकिन 3–4 दिन में फिर वही लक्षण लौट आते हैं
  • जैसे कीट मरे हों, लेकिन अंडों से फिर निकल आए हों — और अब दवा उन पर काम नहीं कर रही

 यह दर्शाता है कि दुश्मन दवा से पूरी तरह खत्म नहीं हो रहा, बल्कि उसे सह रहा है।

3. नए कीट या नए लक्षण उभर आते हैं

  • आपने एक कीट के लिए दवा दी, लेकिन अब दूसरे किस्म के कीट/रोग दिखाई देने लगे
  • पहले एफिड था, अब माइट आ गया
  • पहले धब्बेदार फफूंद थी, अब बारीक पाउडरी फफूंद उभर आई

 यह संकेत है कि खेत में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ चुका है, और प्रतिरोधकता के चलते अन्य कीटों को खुली जगह मिल रही है।

क्या करें अगर ये लक्षण दिखें?

  1. तुरंत दवा बदलें — एक्टिव इंग्रेडिएंट और मोड ऑफ एक्शन देखकर
  2. फसल और कीट/रोग की पहचान किसी विशेषज्ञ से पुनः कराएं
  3. IPM के उपाय मिलाकर अगला छिड़काव करें
  4. खेत का माइक्रो ऑब्ज़र्वेशन शुरू करें — कीट के अंडे, लार्वा और सक्रिय समय समझें

 निष्कर्ष:

जब दवा असर खोने लगे तो छिड़काव बढ़ाना समाधान नहीं होता,
समझ बढ़ाना ज़रूरी होता है।


7. सच्चा किसान कौन?

जब दवा असर करना बंद कर दे, तो किसान अक्सर घबरा जाता है —
और फिर अंधाधुंध छिड़काव, तेज़ रसायन, बार-बार स्प्रे जैसी पैनिक खेती शुरू हो जाती है।

लेकिन यही वो समय होता है जब किसान को रुककर सोचना चाहिए,
ना कि सिर्फ़ छिड़कना।

सच्चा किसान कौन है?

1. जो फसल के दुश्मनों को समझता है

  • हर कीट या रोग को मारने की कोशिश नहीं करता
  • पहचानता है कि कौन दुश्मन है और कौन मित्र
  • समय और लक्षण देखकर फैसला करता है

2. जो मिट्टी, फसल, मौसम और कीट के बीच तालमेल बैठाता है

  • जानता है कि बारिश के मौसम में कौन-सा रोग आता है
  • कौन-से कीट गर्म हवाओं में सक्रिय होते हैं
  • कौन-से जैविक उपाय उस समय कारगर होंगे

3. जो समझ से छिड़काव करता है, डर से नहीं

  • हर हफ्ते दवा देने की आदत नहीं बनाता
  • दवा को आख़िरी उपाय मानता है, पहला नहीं
  • पहले देखता है, फिर सोचता है, फिर छिड़कता है

4. जो अपने खेत को युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि जीवों का संतुलन वाला घर मानता है

  • हर जीव को मिटाने की कोशिश नहीं करता
  • मित्र कीटों, फफूंदों और सूक्ष्मजीवों को सहजीव की तरह देखता है
  • "संतुलन ही समाधान है" — यह बात जानता है


 एक सरल सत्य:

"जो किसान हर कीड़े को मारने निकलेगा, वो अंत में अपने खेत की आत्मा को ही नष्ट कर देगा।"

"पर जो समझदारी से, समय देखकर, संतुलन बनाए रखे — वही सच्चा, टिकाऊ और सफल किसान बनेगा।"


8. निष्कर्ष (Conclusion)

प्रतिरोधकता (Resistance) कोई अचानक पैदा हुआ रोग नहीं है,
और ना ही इसका कोई तात्कालिक इलाज है।

ये एक धीमा ज़हर है जो धीरे-धीरे खेत की उपज, मिट्टी, और दवाओं की ताकत को खत्म करता है।
और इसकी सबसे बड़ी वजह है —
हमारा सोचे बिना, समझे बिना किया गया छिड़काव।


यह लड़ाई दवा की नहीं — सोच की है

  • आज ज़रूरत है सोच बदलने की
  • दवा को "पहला उपाय" नहीं, "आखिरी हथियार" मानने की
  • समझ से खेती करने की, डर से नहीं


याद रखिए:

  • हर दवा का असर सीमित होता है
  • हर कीट, हर रोग को मारना जरूरी नहीं होता
  • खेत को ज़िंदा रखने के लिए उसमें जीवों का संतुलन बनाए रखना जरूरी होता है


 एक सच्चा किसान क्या करता है?

  • वह दवा को तभी चलाता है जब ज़रूरत हो
  • वह मौसम, कीट, मिट्टी और फसल के बीच का रिश्ता समझता है
  • वह समझदारी, जागरूकता और वैज्ञानिक सोच के साथ खेती करता है


अंतिम संदेश:

"दवा से खेती नहीं चलती — समझ से चलती है।

और जब समझ आती है, तो दवा की जरूरत खुद ही कम हो जाती है।"


9. दवाओं के Mode of Action Codes (FRAC/IRAC) क्या होते हैं?

हर रासायनिक दवा किसी न किसी विशिष्ट कार्यविधि (Mode of Action) से कीट या फफूंद को खत्म करती है।
इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर FRAC (Fungicides) और IRAC (Insecticides) कोड से वर्गीकृत किया जाता है।

उदाहरण:

दवा का नामएक्टिव इंग्रेडिएंटकार्यविधि कोडसमूह का नाम
मेलोडी डुओIprovalicarbFRAC 28Lipid synthesis inhibitors
कबरियो टॉपPyraclostrobinFRAC 11QoI fungicides
कनफिडोरImidaclopridIRAC 4ANeonicotinoids
कोराजनChlorantraniliproleIRAC 28Ryanoid modulators

उपयोग कैसे करें?

  • एक ही कोड की दवा को बार-बार न दोहराएं
  • कोशिश करें कि हर छिड़काव में कोड बदलें, ताकि कीट/रोग भ्रमित रहें और प्रतिरोधकता न बने

10. “Do’s and Don’ts” — क्या करें, क्या न करें?

क्या करें (Do's)क्या न करें (Don'ts)
दवा खरीदते समय एक्टिव इंग्रेडिएंट देखेंसिर्फ ब्रांड या दुकान वाले की सलाह पर न चलें
खेत में नियमित निगरानी करेंबिना कीट/रोग देखे दवा न डालें
हर बार दवा का FRAC/IRAC कोड बदलेंएक ही दवा बार-बार न छिड़कें
जैविक और प्राकृतिक तरीकों को मिलाकर चलेंहर कीड़े को मारने की कोशिश न करें
कृषि विशेषज्ञ से राय लेंटंकी मिक्सिंग बिना जानकारी के न करें


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